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कैसे एक कानपुरी बच्चा बना वृंदावन का महान संन्यासी? प्रेमानंद महाराज की अनसुनी कहानी

प्रेमानंद महाराज को आज देश-दुनिया में हर कोई जानता है। वे वृंदावन के एक चर्चित संत हैं, जिनके प्रवचनों को सुनने के लिए बड़े-बड़े अभिनेता, नेता, और खिलाड़ी पहुंचते हैं। उनकी गंभीर बीमारी के बावजूद, वे अपनी राधा और कृष्ण भक्ति में जीने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि उनके संन्यासी बनने की कहानी क्या है?

अचानक बदलती तक़दीर

एक शुक्रवार को, वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज को अचानक बीमारी हो गई थी। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन अब उन्हें फिर से स्वस्थ महसूस हो रहा था। उन्होंने अपनी दिनचर्या में शामिल होने का फैसला किया, और वृंदावन में उनसे मिलने वाले लोगों की भीड़ बढ़ गई।

बचपन से संन्यास की चाह

प्रेमानंद महाराज का जन्म कानपुर के एक छोटे से गाँव में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से थे, और उनका असली नाम अनिरुद्ध पांडे था। जब वे केवल 13 वर्ष के थे, तो उन्होंने अपने घर को छोड़ दिया था। बिठूर गए जब उनके मन में संन्यास जीवन की चाह उमड़ी, और वे घर लौटकर उसे वास्तविकता में बदलने का निर्णय लिया। उन्होंने तत्काल अपने घर को छोड़ दिया और संन्यास जीवन का मार्ग चुना।

अद्भुत परिवर्तन

उन्होंने एक मिलने वाले संत के माध्यम से वृंदावन का सफर किया, जहाँ उन्होंने भगवान कृष्ण और राधा रानी की भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे वृंदावन के प्रमुख संन्यासी बन गए, और आज वे लाखों लोगों के प्रेरणा का केंद्र बने हुए हैं। उनकी गंभीर बीमारी के बावजूद, लोग उनसे मिलने के लिए देर रात से लाइन में लगते हैं।

अंतिम विचार

इस तरह, कानपुर के एक बच्चे ने कैसे संन्यासी जीवन का मार्ग चुना और वृंदावन के सबसे बड़े संतों में से एक बन गए, यह उनकी अद्भुत और प्रेरणादायक कहानी है। वे आज भी अपने भाई और भतीजों से संपर्क में रहते हैं, लेकिन संन्यासी जीवन में रहकर वे उन्हें गांव में नहीं आते। उनका जीवन उनके सेवानिवृत्ति और भक्ति के लिए समर्पित है।

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