उत्तराखंड

Uttarakhand जोशीमठ में दो महीनों के बीच 6 सेमी से 1 मीटर तक भू-धंसाव का खुलासा

एनजीआरआई की जोशीमठ में भू-वैज्ञानिक और भू-तकनीकी के आधार पर प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां की चट्टानें और उसमें मौजूद मिट्टी या दूसरे कण पूरे जोशीमठ में एक समान नहीं हैं, इसकी अधिकतम मोटाई नालों और नालों के आसपास देखी गई है।

Uttarakhand-जोशीमठ में भू-धंसाव: नए अनुसंधान के द्वारा प्रकटित

नवंबर 2022 से जनवरी 2023 तक जोशीमठ  (Uttarakhand) में बढ़े भू-धंसाव का विशेष अध्ययन और उसके परिणामों की खोज।

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भू-धंसाव का अध्ययन: नए प्रारंभ

नवंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिकल इंस्टीट्यूट, हैदराबाद ने जोशीमठ में बढ़े भू-धंसाव का विशेष अध्ययन किया। इस अध्ययन के दौरान एक किमी लंबाई की लाइन को सेटेलाइट से लिए चित्रों में जोशीमठ के भूमि-धंसाव के आंकड़े दर्ज किए गए हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य जोशीमठ के भूमि-धंसाव की प्राकृतिक और तकनीकी विशेषताओं को समझना था।

भू-धंसाव के आंकड़े

इस अध्ययन के नतीजे के अनुसार, जोशीमठ के अलग-अलग क्षेत्रों में भू-धंसाव की अधिकतम मात्रा दर्ज की गई है। इसमें 6 सेमी से लेकर 1 मीटर तक धंसने के आंकड़े शामिल हैं। यह भू-धंसाव का व्यापक क्षेत्र है, जो इस इलाके के भूमि पर प्रभाव डाल रहा है।

भू-धंसाव की विशेषताएँ

इस अध्ययन के अनुसार, जोशीमठ के भूमि-धंसाव में चट्टानों और मिट्टी की विशेषता व्यापक रूप से बदलती है। इसके अलावा, धरातल पर 10 मीटर तक बड़े बोल्डर भी पाए गए हैं, जो इस क्षेत्र की भू-धंसाव की विशेषता है।

भू-धंसाव का कारण

रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ में भू-धंसाव की मुख्य कारण शेल्टन फॉल्ट-लाइन का हो सकता है, जो हेलंग में जोशीमठ के दक्षिण के पास है। इस फॉल्ट-लाइन की प्रभावशीलता के चलते यहां भूमि के अंदर दरारें बढ़ी हैं। जोशीमठ में कुछ छोटे-छोटे भूकंप भी दर्ज किए गए हैं, लेकिन बड़े भूकंप की संभावना कम है।

जोशीमठ के भू-धंसाव का भविष्य

जोशीमठ के भू-धंसाव का भविष्य अध्ययन के परिणामों के आधार पर अनिश्चित है। इसके बावजूद, इस इलाके के भूमि-धंसाव के प्रभाव को समझने के लिए नए और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है।

इस अध्ययन के माध्यम से जोशीमठ में बढ़े भू-धंसाव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। इससे इस क्षेत्र के भूमि-धंसाव की प्राकृतिक और तकनीकी विशेषताओं को समझने में मदद मिलेगी और भविष्य में किसी भी भूकंप के खतरे को सही तरीके से पहचानने में मदद मिलेगी।

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